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शहीद दिवस पर

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शहीद दिवस पर :
डॉ.लाल रत्नाकर
यह झलक है आगामी मनुस्मृतिवाद का और इसके लिए जिम्मेदार हैं इस देश के दलित पिछड़े और अल्पसंख्यक और उनके नेता, नेताओं के चट्टू और उनके समर्थक जिन्होंने झूठे, फर्जी, पिछड़े और गपबाज ठग को समझने में गहरी नासमझी दिखायी है। राजनीतिक ठगी का जो दौर हमने देखा है वह संभवत: मध्यकाल में भी किसी ने नहीं ही देखा हो ? क्योंकि विकास की जितनी अवधारणाएं बन सकती थी सब हमारे समय में ही प्रयुक्त हुई हैं, आजाद भारत की बात हो, समाजवादी विचारधारा की बात हो, बहुजन आंदोलन का सवाल हो, सामाजिक न्याय की लड़ाई का मामला हो सब कुछ इसी बीच परवान चढ़ा है। लेकिन उन्हें ऐसा नेतृत्व मिला जो सारी अवधारणाओं को धूल धूसरित कर दिया और ऐसे नायकों के हाथ में सत्ता गई जिन्होंने मूल उद्देश्य के विपरीत ही काम किया। जिसका खामियाजा आज देश की 85 फ़ीसदी आवाम को भोगना पड़ रहा है और उन अवधारणाओं पर किसी को विचार करने का न तो समझ, वक्त और ना ही सोच की ताकत ही है।

इन नेताओं की आर्थिक समृद्धि की राजनीतिक सोच के रानितिज्ञों के कुकर्मों का ही दुष्परिणाम आज यह महान बहुजन देश भोग रहा है, विकास की सारी धाराएं मोड़ दी गई है जो देश को पुरे मध्यकालीन पाखंडी और अज्ञानी तानाशाहीपूर्ण साम्राज्य की ओर ले जाने के लिए मुंह बाए खड़ी हैं । और निरन्तर खड़ी की जा रही हैं । सारे संवैधानिक अधिकारों को समाप्त किया जा रहा है जिस पर देश के चारों खंबे आश्चर्यचकित तरीके से मौन है या तो गुणगान करने में मशगूल हैं। आज हम जिस सत्ता के अधीन उम्मीद के पुल बांधे हुए हैं उसके अनुयाई जो वास्तव में नासमझी की हद तक समझ रखते हैं उन से कैसे निजात मिले यह तो गोरखपुर और फूलपुर की जनता ने बताया है । यदि यह जनता जागती रही और 2019 में इनका हिसाब किताब ठीक से कर दी तभी यह देश डॉ.बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में बने संविधान की रक्षा कर पाएगा। जबकि उनका नेतृत्व दिग्भ्रमित हो करके कहीं उन्हीं ब्राह्मणवादियों के इर्द गिर्द ना मंडराने लगे जिन्हें वह अपना हितैषी समझते हैं और वह हितैषी की बजाए उनका सर्वनाश करने पर रात दिन आमादा रहते हैं।
यही कारण है कि उन्हें अपने वैचारिक बहुजन की पूरी टीम (अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, शिक्षाविद, वैज्ञानिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक इनमें से अधिकाँश चीजें अम्बेडकर साहित्य में मौजूद हैं ) भी ढूंढने होंगे और उनके आधार पर नीतियां बनाकर के भविष्य की राजनीति को बहुजन राजनीति के रूप में विकसित करना होगा जो निश्चित तौर पर आज के समाज में बहुत दूर खड़े हैं उन्हें सत्ता के समीप लाना होगा। अन्यथा मनुस्मृति के सिद्धांत निरंतर लागू किए जा रहे हैं जिससे देश की 85% फ़ीसदी अवाम निरक्षर और निरीह बन करके मजलूम और गुलामी की जिंदगी जीने को बाध्य न हो।
जैसा की हम देख रहे हैं विभिन्न क्षेत्रों में इसी तरह के फरमान जारी किए जा रहे हैं अभी ताजा ताजा परिणाम शिक्षा विभाग का है जिसमें देश की तमाम प्रमुख शिक्षण संस्थाओं को स्वायत्तशासी बना कर के यही संदेश दिया गया है कि वह अपनी मनमानी से उनके आकार प्रकार और उद्देश्य को बदल डालें जो संस्थाएं आमजन के लिए बनी थी उन्हें खासजन की बना दी जा रही हैं ? इसके नाना प्रकार के प्रयोग पिछले दिनों देखने को मिले हैं हम यदि अब न जागे तो गाय की पूंछ पकड़कर घर में कसाई की तरह घुस जाने की कथा कोई नई नहीं है हम लोगों ने पिछले काफी दिनों से गाय और गोबर से रूबरू होते हुए इस तरह के दुष्परिणाम देखने को बाध्य हुए हैं।
इन सारी स्थितियों के लिए जिन्हें जिम्मेदार ठहराया जा रहा है वे लोग समाजवाद बहुजनवाद और सामाजिक न्याय के आंदोलनों से निकले हुए लोग हैं जिन्होंने मनुवादी व्यवस्था को अंगीकृत करके मनुवाद को समाप्त करने की बजाय ऐसे मनुवाद का सृजन कर दिया है जिसको हटाना उनके बस का नहीं है । लेकिन अगर संविधान के अनुसार चुनाव हुए तो जनता ने मन बना लिया है कि अब वह इस तरह की गलती नहीं करेगी।


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